मैं कवि हूँ
मैं ने कविता लिखी
किसान ने आत्महत्या की है
थोड़ा और मनन किया
दो चार अखबार और पढ़े
किताब पढ़ी, फिर थोड़ा और लिखा
जब किसान छाया हुआ है अखबारों में
ताजे विषय पर ताजी कविता त्वरित रूप से तार देगी मुझे
अभी वो बात नहीं बनी है
कि अभी वो मर्म नहीं आया है
चाल में अभी वो लय नहीं उतरी है
अभी वो शिल्प नहीं उभरा है
जो विषय दशकों से ताजा है
जिस पर लिख-लिख कर साईनाथ जैसों के खुर घिस गए
जिस पर हज़ारों पीएचडी देस विदेश में खप गई,
जिस पर दशकों से चिंतन मनन हो रहा है
वो विषय ताजा है अभी भी, तो क्या मेरी कविता के पकने भर के समय में बासी हो जाएगा?
मैं ने चाय का बड़ा वाला मग्गा भरा
टेबल लैंप का मुँह सीधा किया और उसे ऑन किया
अपना मनपसंद पेन हाथ में लिया
आराम से कविता को सामने जमाया
और लग गया कविता पकाने में.
इस बार की फसल पकने (या खराब होने) के पहले
मेरी कविता, किसान आत्महत्या पर, पक जाएगी...