7 जुलाई 2010

एक तस्वीर दो ख्याल




|एक |



चल घर चले
थकी हुई सांसों में
थोडा चैन भरे 
चल घर चलें
इतनी सी बात को 
उतनी लम्बी न करे 
चल घर चलें
शब्दों से कडवे हुए कलेवर को
चाय की चुस्की से मीठा करें 
चल घर चले ! 



|दो |

कौन जाने ?
थके मांदे ये राहगीर किसे पता कितनी दूर हैं उस घर से जहाँ इनका बसेरा है ? 
ढलती शाम में चढ़ती बेचैनी है मन में या तन में थकान का डेरा है ? 
इस सफ़र में साथी का भरोसा है या संशय है के कौन परछाई ने पीछे से टेरा है ? 
घर बस पहुँच ही जाने की उम्मीद है या चिंता है कि पल पल बढ़ता ये अँधेरा है ? 
कौन जाने कितने आते जाते ख्यालों के बीच ये दोनों चले जा रहे हैं, कौन जाने और कितने कदमो का फेरा है ? 










तस्वीर यहाँ से ली गई :http://www.samsays.com/Images/Guest%20Gallery/Swapan%20Mukherjee/04.-Going-Home.jpg