12 नवंबर 2009

नौटंकी

जिसने अपने पत्ते खोल दिए,
वो पतित !
जो बैठे है,
सन्नाटे कि ओड लिए
उनमे तमगे बांटे जाएगे !

6 नवंबर 2009

मीता ! -3

ओ मीता !
तेरी यादो के गीतों से एक बोल उठाया कल
फिर गुनगुनाया कल,
दिन-ब-दिन जिसे हाथो से फिसलता पा रहा था -
उस एहसास को जी आया कल !

ओ मीता !
सपने में तेरा फ़ोन आया कल,
मैं सकपकाया कल,
गन्ने सी मीठ उस 'हेलो' को सुन,
भूला सारा खोया-पाया कल,
तर हो के आया कल !









5 नवंबर 2009

बह गए है वो मंज़र...

भूल गए कुछ बाते जिनसे सरोकार पुराने गहरे थे,
चेहरे वो दिखाई नहीं देते सदा जिनपर आँखों के पहरे थे.

टूट कर मिल गए हैं झील में वो किनारे झील के,
बैठ कर जिन पर हम ढेले लहरों में बोते थे,
पानी चढ़ आया है यादो के तटबंद तक,
बह गए है वो मंज़र -
जो जड़े हमारी होते थे !

2 नवंबर 2009

ज़िन्दगी !

हर पल एक नया सफा है,
हर दिन एक नई किताब है,

ज़िन्दगी कभी ख़त्म नहीं होती...!

वो लड़की.

दरख्तों के झुरमुट से बिखरती सूर्य की किरण सी
किसी थकी सी भीड़ में अलग खड़ी, उर्जा से भरी -
वो लड़की.

कभी नदी के किनारे पड़ी रेत सी स्थिर
तो कभी नदी की धार में बहती चंचल पत्ती सी -
वो लड़की.

कभी समुद्र की राह रोके पड़ी किनारे की चट्टान
तो कभी लहरों सी बेरोकटोक उमड़ती
वो लड़की.

कभी बारिश की पहली बूंदों से उठी सोंधी खुशबू
तो कभी कड़क धूप में धरती में पड़ी दरारों सी
वो लड़की.

कभी घने कोहरे में सामने खड़ी, अबूझ
तो कभी खुली किताब सी
वो लड़की.