जिसने अपने पत्ते खोल दिए,
वो पतित !
जो बैठे है,
सन्नाटे कि ओड लिए
उनमे तमगे बांटे जाएगे !
12 नवंबर 2009
6 नवंबर 2009
5 नवंबर 2009
बह गए है वो मंज़र...
भूल गए कुछ बाते जिनसे सरोकार पुराने गहरे थे,
चेहरे वो दिखाई नहीं देते सदा जिनपर आँखों के पहरे थे.
टूट कर मिल गए हैं झील में वो किनारे झील के,
बैठ कर जिन पर हम ढेले लहरों में बोते थे,
पानी चढ़ आया है यादो के तटबंद तक,
बह गए है वो मंज़र -
जो जड़े हमारी होते थे !
चेहरे वो दिखाई नहीं देते सदा जिनपर आँखों के पहरे थे.
टूट कर मिल गए हैं झील में वो किनारे झील के,
बैठ कर जिन पर हम ढेले लहरों में बोते थे,
पानी चढ़ आया है यादो के तटबंद तक,
बह गए है वो मंज़र -
जो जड़े हमारी होते थे !
2 नवंबर 2009
वो लड़की.
दरख्तों के झुरमुट से बिखरती सूर्य की किरण सी
किसी थकी सी भीड़ में अलग खड़ी, उर्जा से भरी -
वो लड़की.
कभी नदी के किनारे पड़ी रेत सी स्थिर
तो कभी नदी की धार में बहती चंचल पत्ती सी -
वो लड़की.
कभी समुद्र की राह रोके पड़ी किनारे की चट्टान
तो कभी लहरों सी बेरोकटोक उमड़ती
वो लड़की.
कभी बारिश की पहली बूंदों से उठी सोंधी खुशबू
तो कभी कड़क धूप में धरती में पड़ी दरारों सी
वो लड़की.
कभी घने कोहरे में सामने खड़ी, अबूझ
तो कभी खुली किताब सी
वो लड़की.
किसी थकी सी भीड़ में अलग खड़ी, उर्जा से भरी -
वो लड़की.
कभी नदी के किनारे पड़ी रेत सी स्थिर
तो कभी नदी की धार में बहती चंचल पत्ती सी -
वो लड़की.
कभी समुद्र की राह रोके पड़ी किनारे की चट्टान
तो कभी लहरों सी बेरोकटोक उमड़ती
वो लड़की.
कभी बारिश की पहली बूंदों से उठी सोंधी खुशबू
तो कभी कड़क धूप में धरती में पड़ी दरारों सी
वो लड़की.
कभी घने कोहरे में सामने खड़ी, अबूझ
तो कभी खुली किताब सी
वो लड़की.
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