कर रहा था गमे जहाँ का हिसाब, आज तुम बेहिसाब याद आये ...कभी-कभी याद आना किसी का एक मुसीबत सा बन जाता है. हमारे जेहन से चिपकी यादें, मूल रूप से हमारी अस्सेट्स होती हैं. खाजाना जो हमने इकठ्ठा किया है अभी तक के सफ़र में अपने. लेकिन जब इन्ही यादों में से कोई एक, आँखों में नींद न आने दे और एक हिस्सा विश्वास और जस्बा पिघलने लगे, तो वो दर्द बनके रगों में दौड़ता है....दर्द तो कुछ देर में खत्म हो जायेगा, लेकिन जस्बा जो पिघला - तो वापस उतना ही बनने में समय लेता है.
कब तेरी नूरियां मेरी आँखों से ओझल होगी
और कितनी रातें, नींद यूँ ही बोझिल होगी.
बोलने लगे है सुनसान सन्नाटे भी अब तो,
मैं सोचता हूँ, बाजी तेरी पायल होगी.
जब तलक समझ पाएंगे प्रीत का मतलब ये लोग,
प्रीत तेरी, दुनिया की नज़रों से यूँ ही घायल होगी.
इंसानों से बेहतर तो जानवर बात करते हैं,
ये कोयल बोली है यहाँ, कूकी कहीं और कोई कोयल होगी.