20 जनवरी 2016

​​ कोलतार


एक 

वो पिघला हुआ कोलतार,
एक छिदे हुए धब्बे से,
टूटी हुई सड़क पर 
छिड़क रहा है 

उसके पैर में 
किसी के तजे हुए जूते हैं 
कोलतार उन पर चिपकता जाता है 
उसके जूते बड़े होते जाते हैं 
सर पे सूरज 
पाँव में पिघली धुप 
दिल में ...?

दो 
कोलतार सनी गिट्टी 
पिघले कोलतार से लिपि सड़क पर 
वो गिराता है साइकिल रिक्शा से 
दो और लोग उस गिट्टी को फावड़े से 
समतल करते जाते हैं 
उनके पावों में भी तेरे मेरे तजे हुए 
जूते हैं 
गिट्टी सोल में चिपकती जाती है 
जूते भारी होते जाते हैं 
उन दोनों की ऊंचाई दो इंच ज्यादा है सुबह से 
क्या वो खुद को अमिताभ बच्चन समझ रहे है ?



तीन 
फ्लिप्कार्ट पर उसने नए जूते देखे हैं 
एक सप्ताह बाद उसका इंटरव्यू है 
वो सोच रहा है यही फॉर्मल वाले ले लूँ,
या वो लूँ जो इंटरव्यू के बाद भी काम आयें,
एक ही दिन के लिए क्या ठीक है ये जूते लेना?
वो दो जोड़ी जूते बुलवाता है 
एक फॉर्मल-इंटरव्यू के लिए 
एक सेमी फॉर्मल-मॉल में घूमने के लिए 
उसने ज़िन्दगी में बहुत मेहनत की है,
पहले इंजीनियरिंग की पढाई 
फिर मैनेजमेंट की पढाई 
दोनों ही डिग्री देश के बेहतरीन संस्थानों से 
इतना तो बनता है 
आखिर वो इंजिनियर है 
और अब बैंक में एनालिस्ट होने वाला है 
इंजिनियर की भी कोई इज्ज़त होती है ! 
और फिर वो जितने जूते लेगा उतना अच्छा है 
देश की अर्थव्यवस्था के लिए 
उसकी इज्ज़त और पैर के आराम के लिए 
और उस कोलतार से रोज खेलने वाले मजूर के लिए 
इंजिनियर तजेगा, मजदूर पहनेगा 
इंजिनियर है भाई,
मेहनत वालों का काम आसान करना काम है उसका 
सस्ते, टिकाऊ, जूते की डिजाईन से नहीं… 
या कोलतार बिछाने वाली छोटी किसी मशीन से नहीं ....
तो क्या हुआ 
अपने जूते तज  के ये बैंक का एनालिस्ट-इंजिनियर 
एक मजूर का काम आसान करेगा! 
करेगा की नहीं?