21 जून 2012

दो शब्द, एक चुप्पी




दो शब्द...
एक बंधती आस....एक छ्टांग उम्मीद....एक पोटला आशा...
दो शब्द...बोझिल मन को पिघलाती दवाई...

दो शब्द...
गुस्से के पत्थर से तोड़ते विश्वास....ढेर सारी नफरत...
दो शब्द...मन को  जकड़ता जाल...



एक चुप्पी...
शक और यकीन के बीच डोलती एक हिस्सा कोशिश...बहुतेरी अचकचाहट... 
एक चुप्पी...मन को परखती नज़र...

एक चुप्पी...
एक शांत निःश्वास...गहरा पैठा विश्वास...
एक चुप्पी...मन से निरंतर प्रस्फुटित प्यार...

11 अप्रैल 2012

हवा, गिलहरी, चिड़िया...


वो हवा जो बह रही थी, अन्दर एकांत को सह रही थी,
कुछ चिड़ियों की आवाजों ने साथ दिया,
तो झुका उसका मस्तक ऊपर उठा.

कानो में रस घुला कुछ और चहचहाअटों का,
उसने बोगनविला के फूलों-काँटों-पत्तियों को डाली के झूले पर झूमता देखा,
बेरंग चेहरे पर एक छोटी सी मुस्कान आई,
वहीं पास एक चिड़िया ने लम्बी तान लगाई !
फुदकती गिलहरी उसे देख शरमाई...
दो कदम पीछे हट, फिर मुड के, घबराई,
छोटी सी मुस्कान और बड़ी हो गई,
गिलहरी बेंच के नीचे खो गई!

हलके गुलाबी, ताज़े हरे रंग से सराबोर बोगनविला की डाली स्थिर होने लगी,
गिलहरी दाना ढूँढती गौरैया को टोहने लगी,
गौरैया ने एक फर्लांग लगाई,
और मस्ती में गिलहारी की पीठ पे की चढाई,
दोनों खेलते हुए उसके बिलकुल पास आ गए...
गोरैया के दाने पडोसी खा गए!

भीनी सी पुरवाई ने कुछ आवाज़े उपजाई,
गोरैया और गिलहरी के मन में सावधानी जगाई,
उसके मस्तक पे ठंडी हवा के झोके ने जादू की छड़ी घुमाई,
आशा ने नई सुबह में ली एक अंगड़ाई,
सपनो के आकार में, सोच लेने लगी लम्बाई,
गौरैया तब तक पांच हो गई...
गिलहरी अबके झाड़ियों में खो गई!

मैना की तान में कोयल की कूक का समागम हुआ..
जस्बे का, लहू में उसके आगमन हुआ.
कहाँ तब वो अकेला, उदास बैठा था.
कहाँ अब मस्ती में दोस्तों के झुण्ड के साथ, चेतन खड़ा था.