23 दिसंबर 2023

कविता का पकना जरूरी है!

मैं कवि हूँ
मैं ने कविता लिखी
अखबार देखा तो पाया
किसान ने आत्महत्या की है
मैं ने किसान की आत्महत्या पर कविता लिखी 

उसे पढ़ा,
थोड़ा और मनन किया
दो चार अखबार और पढ़े
लाइब्रेरी गया-आलेख  पढ़ा
किताब पढ़ी, फिर थोड़ा और लिखा
मैं ने पाया कविता बन गई है
सोचा इसे किसी को भेजा जाए
जब किसी और द्वारा पढ़े जाने का विचार आया
तो लगा कविता अभी पकी नहीं है, और लिखना होगा
पर फिर लगा कि मौका तो आज है, 
जब किसान छाया हुआ है अखबारों में
भेजने में समझदारी होगी, 
ताजे विषय पर ताजी कविता त्वरित रूप से तार देगी मुझे 

लेकिन फिर लगा
अभी वो बात नहीं बनी है
कि अभी वो मर्म नहीं आया है
चाल में अभी वो लय नहीं उतरी है
अभी वो शिल्प नहीं उभरा है

और वैसे भी मुद्दा किसान आत्महत्या का है
जब भी निकालूंगा कविता इस पर, ताजा ही रहेगी
जो विषय दशकों से ताजा है
जिस पर लिख-लिख कर साईनाथ जैसों के खुर घिस गए
जिस पर हज़ारों पीएचडी देस विदेश में खप गई, 
जिस पर दशकों से चिंतन मनन हो रहा है
वो विषय ताजा है अभी भी, तो क्या मेरी कविता के पकने भर के समय में बासी हो जाएगा?

मैं ने चाय का बड़ा वाला मग्गा भरा
टेबल लैंप का मुँह सीधा किया और उसे ऑन किया
अपना मनपसंद पेन हाथ में लिया
आराम से कविता को सामने जमाया 
और लग गया कविता पकाने में.

इस बार की फसल पकने (या खराब होने) के पहले 
मेरी कविता, किसान आत्महत्या पर, पक जाएगी...