कुछ ढूँढता हूँ
इन तस्वीरों में
जो सामने मेरे पड़ी हैं
हँसते हुए मेरे दोस्त हैं
कुछ चुप खड़े हैं
कुछ के अंतर तक हंसी गडी है
कहीं गलियां हैं
कहीं कुछ ठीये हैं
एक घर है
जो अब मकान जैसा लगता है
नातेदार हैं
खून के रिश्ते वाले
कुछ बिना खून के रिश्ते वाले.
कुछ तस्वीरों में इंसान नहीं है कोई भी
खंडहर है महल है
सड़क है पुल है
झील है और झील में डूबी हुई बातें हैं
कहीं किसी सीढ़ी या बेंच पर
सालों से बैठा विश्वास है
कहीं किसी खंडहर सी
बची-कुची कोई याद है.
इन तस्वीरों में
मैं ढूँढता हूँ कुछ-
जो तब महसूस होता था,
जो आज की हकीकत में,
मुझे दिखता नहीं अब.
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