7 दिसंबर 2023

पूना!

पूना तुम्हे संभालना होगा खुद को
माया रचने वाले चाहेंगे के तुम बम्बई के छोटे भाई बनो
या रहो
पर पूना तुम कुछ और हो या हो सकते हो
तुम इंदौर के बढे भाई बन सकते हो 
रास्ता दिखा सकते हो इंदौर को और इंदौर जैसो को 

बम्बई के पास अपना समंदर है
उसकी सड़ांद को हवाओ के हवाले करने के लिए
बम्बई के पास अपना पूना है लोनावला है
उसकी कोफ़्त को नज़ारों के हवाले करने के लिए
तुम्हे पूना अपना घर खुद ही बचाना है

तुम्हारे आँगन में जो आबो-हवा है
वही तुम्हारा समंदर है, और घाँट भी
तुम्हे बम्बई बनाने वाले जानते है
पर कहते नहीं
क्यों तो तुम जानते ही हो
पैसा छोटे, सुन्दर शहरों को कॉन्क्रीट के ख़्वाब दिखाने से ही बनता है

तुम्हे रहना है पूना
तुम्हे बनना है इंदौर का बढ़ा भाई
उसे दिखाना है रास्ता
कि खुद में खुद जैसा रहने से
आप कुछ बनते हो असल काम का
हर किसी के पास अपना समंदर नहीं
हर कोई बम्बई बनना 'अफोर्ड' नहीं कर सकता

तुम्हारे आँगन की आबो हवा, तुम्हारे टीलों, खेत खलिहानो, सालों से तुम्हारे छोटे शहर होने की निशानी तुम्हारे असंख्य पेड़ों की देन है
तुम्हे बम्बई बनाने वाले इन्ही सब निशानियों को खिला देना चाहते हैं तुम्हे
ताकि तुम्हारी कंक्रीट की सिक्स पैक एब्स निकल आये

मानव की सेहत ख़राब हो जाये अगर ऐसे 'ऐब' निकालने में
तो वो योग कर सकता है, आयुर्वेद का सहारा ले सकता है (आज के हिसाब से)
या हस्पताल में भर्ती हो सकता है,
बहुत हालत पतली भी हो जाये तो भी समाधान है 
पर शहरों को बम्बई या शंघाई बनाने में अगर उनकी हालत ख़राब हो तो कोई समाधान नहीं है अभी भी
नेहरू, गाँधी, मोदी, दीन दयाल, टाटा, बिरला, अम्बानी - किसी भी नाम का 'शहरों का हस्पताल' सुना या देखा है कभी ?

ध्यान तुम्हे ही रखना होगा पूना
कितने खेत खाने है, कितने टीले चबाने है, कितने पेड़ उड़ाने है
सब हिसाब बैलेंस में बनाए रखना होगा
ये 'डेवेलपमेन्ट' का 'जिम' हम 'देशज' लोगो को नहीं सुहाता कभी कभी
अरे सैर करो, ट्रेक करो, साइकिल चलाओ,
आँगन में हवा बहने की जगह रखो
याद रखना
बम्बई के पास अपना समंदर है और घाँट भी
पूना! तुम्हे संभालना होगा खुद को, खुद ही! 


बम्बई पर लिखी कविता यहां पढ़ सकते हैं: 



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