31 मई 2013

लाइट हाउस और तूफ़ान


हमारे समंदर में
वो विशालकाय सरकारी जहाज
टहल रहा है।

अगर वो यूँ ही बढ़ता रहा
तो हमारी छोटी छोटी निजी कश्तियों को
उलटता, डूबोता, तोड़ता चला जायेगा।
हमें एक लाइट हाउस की दरकार है
उस पर हम अपने अधिकारों की रौशनी लगाएंगे
ये जहाज है
इसे या तो तूफ़ान दिखता है
या लाइट हाउस।
लाइट हाउस हमें ही बनाना पड़ेगा,
जरूरत आने पर
तूफ़ान भी हमें ही उठाना पड़ेगा।

वो बूढ़े बाबा जो चौक पर बैठ कर
आते जाते सभी को देखा करते हैं
दो चार से बात करते हैं
और दो चार को अपनी बीडी का धुआं पिलाते हैं,
उन्हें बता आओ, जल्दी,
की हमें उनकी माचिस की जरूरत पड़ सकती है.

और अगर कहीं लाइट हाउस से काम न बना
तो उस स्थिति के लिए माँ को भी बोल आओ,
की कड़छी तैयार रखे...!






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2 टिप्‍पणियां:

Pankti Vashishtha ने कहा…

इतने दिनों बाद .. इस दूकान पर माल देखकर अच्छा लगा .. I just love the style of writing..

Unknown ने कहा…

kya baat hai ... good to see a post after such a long time ..
:)