5 नवंबर 2009

बह गए है वो मंज़र...

भूल गए कुछ बाते जिनसे सरोकार पुराने गहरे थे,
चेहरे वो दिखाई नहीं देते सदा जिनपर आँखों के पहरे थे.

टूट कर मिल गए हैं झील में वो किनारे झील के,
बैठ कर जिन पर हम ढेले लहरों में बोते थे,
पानी चढ़ आया है यादो के तटबंद तक,
बह गए है वो मंज़र -
जो जड़े हमारी होते थे !

2 टिप्‍पणियां:

Shivdev Singh ने कहा…

maje aay gaye guru..laage raho!!

Unknown ने कहा…

beet gaye wo majzar...jaha reto main pathar hum feka karte the :)...superbbbb!!!!!