19 जनवरी 2010

रंग हमारा


काला और सफ़ेद ही रंग नहीं है लोगो का,
काले में भिन्न भिन्न गहराइयाँ  है,
सफ़ेद में अलग अलग स्तर की रौनक है.
कहीं पीलापन है.
फिर बाज़ार में बातों, यादों, तजुर्बे और मजबूरियों का
हरा, नीला, लाल रंग भी मिलता है.
जो साल-दर-साल काले-सफ़ेद पे चढ़-उतर कर...
हम सब को लगभग एक ही जैसा पोत देता है.

हमे कोई हक़ नहीं,
कि सामने वाले के अजीब से रंग को देख कर नाक-भौंह सिकोड़े,
या हंसी उसकी उड़ायें,
रंग हमारा भी उतना ही रंगीन है,
या शायद बेरंग,
या चितकबरा -
एक बार शीशा पहले देख आयें !

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