जो माचिस संभाल कर रखते हैं,
वो यक़ीनन धधकते अंगारे नहीं देख पाते.
वो फिर कुछ, किसी और जगह, काड़ियाँ इकठ्ठी कर,
दस मिनिट की आग सुलगाने लगते है.
बार बार बत्ती लगाने से बस आग लगती है ,
जो बिना असले के, फडफडा के बुझ जाती है,
और उठता है सिर्फ धुआं,
जो आँखों को बेचैन कर बैठ जाता है.
जिन्हें रात बितानी है जाड़े में,
पहुंचाना है आग को उसके अंजाम तक
और यक़ीनन देखने हैं धधकते अंगारे,
वो माचिस नहीं संभालते -
- वो ढूंढ़ते हैं लकड़ियाँ,
ढूंढ़ते हैं ढेरो में लकड़ियाँ.
अंगारे बार-बार आग लगाने से नहीं
आग में बार-बार लकड़ियाँ डालने से बनते है.
Photo Source : http://upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/1/1e/Embers_01.JPG
२०१० की पहली पोस्ट थी. आप को नव वर्ष की शुभकामनाएं !! उम्मीद है २०१०, शानदार रहे !
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें