10 दिसंबर 2009

मीता - 4

संजा खिली है,
रंगों की खेंप आयी है सूरज की दूकान में !
एक रंग रह गया है लेकिन.
वो वाला जो बनता था तेरे चेहरे पे-
संजा के रंग बिखरने से !
हंसी से तुम्हारी, वो रंग थिरकता था,
तेरे गालो और होटों पे -

मीता ! हंस दे तो पूरी खिले संजा !



मीता  -3 
मीता - 2
मीता ! 

1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

wah wah wah ...kyaa baat hai....beautiful yaar :)