बातें की है तुमसे हज़ार
लेकिन कभी समझ नहीं पाया मैं
और न ही समझा पाया तुम्हे कभी
कि क्यों एक सनसनी सी होती है मन में-
जब मैं-तुम साथ होते है
ना ये समझ पाया कि क्यों तुम्हारे बिना भी
सनसनी सी होती है मन में.
और ना ही ये समझ पाया कभी
कि क्यों मैं तुम्हे बताता नहीं
कि होती है सनसनी साथ या बिन तुम्हारे.
और ये तो मैं बिलकुल ही नहीं समझ पाया
कि ना बता कर, तुम्हे खोने की रिस्क उठा कर भी,
क्यों मैं चलना चाहता हूँ दो कदम तुम्हारे साथ,
क्यों मापना चाहता हूँ तुम्हारे कदमो की लम्बाई,
और क्यों बैठाना चाहता हूँ तारतम्य !!
कि क्यों एक सनसनी सी होती है मन में-
जब मैं-तुम साथ होते है
ना ये समझ पाया कि क्यों तुम्हारे बिना भी
सनसनी सी होती है मन में.
और ना ही ये समझ पाया कभी
कि क्यों मैं तुम्हे बताता नहीं
कि होती है सनसनी साथ या बिन तुम्हारे.
और ये तो मैं बिलकुल ही नहीं समझ पाया
कि ना बता कर, तुम्हे खोने की रिस्क उठा कर भी,
क्यों मैं चलना चाहता हूँ दो कदम तुम्हारे साथ,
क्यों मापना चाहता हूँ तुम्हारे कदमो की लम्बाई,
और क्यों बैठाना चाहता हूँ तारतम्य !!
1 टिप्पणी:
Kya baat hai yaar... thanks.. mere liye itna kuchh likhne ke liye....
Atul
एक टिप्पणी भेजें