24 अक्तूबर 2009

मैं एक कुत्ता हूँ !

मैं एक कुत्ता हूँ !
खुद को गाली नहीं दे रहा,
आप आगे पढें तो समझ जायेंगे।

मैं कुत्ता हूँ इसलिए,
कि जब मै उन लोगो को देखता हूँ,
जिनको मैं दोस्त समझता हूँ
तो मेरी अद्रश्य पूँछ हिलने लगती है,
दिल बाग़ बाग़ हो जाता है,
आधी बॉडी मटकने लगती है।

मैं एक कुत्ता हूँ इसलिए,
कि मुझे गंध आती है।
कुत्तो कि सूंघने की शक्ति तेज होती है,
उन्हें दूर दूर से गंध आ जाती है,
तो मुझे भी गंध आ जाती है।

जब किसी शहर में पहुँचता हूँ,
या अपने ही शहर की सड़को पर फिरता हूँ
तो जहाँ मैं बैठा था यारो के साथ,
या जहाँ किसी ठीये पर खाया था कुछ,
बतियाया था कुछ,
या जहाँ कही पैदल घुमे थे,
उन सारी जगहों पर,
वो सालो पुरानी गंध मेरी नाक में समा जाती है -
और मैं नोस्टालजिक हो जाता हूँ...

अब समझ गए होंगे आप,
कि "मैं कुत्ता हूँ" कह कर गाली नहीं दे रहा था खुद को,
बल्कि मैं तो खुद की ही तारीफ़ कर रहा था !

ओर हम सब, मुझे लगता है,
आधे-अधूरे या पूरे कुत्ते/कुत्ती हैं !

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