परचून की दुकान !
31 अक्तूबर 2009
एक शेर
रुके थे कदम घर से निकलने से पहले, तेरे दर पे आ कर फ़िर रुक गए,
झुके थे हम सजदे में, पीली ओडनी से झाँकती नज़रो को देख फ़िर झुक गए।
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