24 अक्तूबर 2009

बसंती तेरे बिना

तुम्हारी खुशबू मे दौलता मेरा मन-

बेसूध पड़ा है !


सुनहरी बसंत की धूप सी,

तुम्हारी आभा बिखरी है मेरे चेहरे पर।


मेरी साँसे मद्धम-मद्धम बह रही है,

मेरा भीतर ही भीतर सुलगना सह रही है।


मौसम सा - इस बसंत सा,

अल्मस्त हो रहा हूँ मैं और सोच रहा हूँ-

क्या करता इस बसंत का मैं,

बसंती तेरे बिना ?

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